खुद से संवाद

आईने में ‘मुकुल’ जब भी खुद को स्वयं के सवालों से रूबरू करता है। जाने कैसे अपने ही दिल के जख्मों को बरबस छू लिया करता है।। शिकवों, उम्मीदों, उलझनों में छुपा रखा था जो सच उसने, पाकर आईने को अपने सामने नजरें वो झुका लिया करता है। कहाँ जाऊँ, किससे कहूँ अपने दिल की […]

प्रतियोगिता : आईना की बात “

विषय : खुद से संवाद मेरे घर के आईने में ही मेरा चेहरा दिखता है, बाक़ी बाहर तो लोगों को नकाब ही दिखता है… .. अक्सर तन्हाई में मुझसे बातें करते दिखता है, पूछता है सवाल,लोगों से क्यों उम्मीद रखता है… .. तुझे आता है लिखना, तुझे सब हूबहू दिखता है, इतना हॅसता चेहरा है,और […]

खुद से संवाद

प्रतियोगिता – आईने की बात विषय – खुद से संवाद बसर अपनी जिंदगी तो .. एक उम्र से कर रही हूं।। आज खुद के सामने मैं आईना.. कर रही हूं।। देखूंगी अपने चेहरे को शीशे में बार- बार… मैं अपनी जवानी की यादें ताज़ा कर रही हूं ।। रेशम सी थी जुल्फ़े कभी .. कभी […]

खुद से संवाद करना

प्रतियोगिता: आईने की बात टॉपिक: खुद से संवाद खो कर खोखली हक़ीक़त में खुद का साया, अब चाहती हु कुछ वीरान शीशों में खुद को तलाश करना। क्या ये मन हमेशा से ऐसा ही था? अब चाहती हु उस पिछड़े हुए वजूद को याद करना। वो खोया हुआ बचपन, वो बेफिक्र ज़माना, वो नए दोस्त […]

“आईने से एक मुलाक़ात”

“आईने से एक मुलाक़ात” आज फिर देखा मैंने — आईने में एक चेहरा झुका हुआ। होंठ खामोश, आँखें सवालों से भरी, जैसे कुछ कहना चाहता हो… पर कह नहीं पा रहा। मैंने पूछा — “कौन हो तुम?” वो बोला — “मैं वही… जिसे तूने छुपा रखा है। तेरे मुस्कुराते चेहरे के पीछे, तेरी टूटी हुई […]

खुद से संवाद

आईने से बात आईने में झाँका तो खुद से सवाल किया, “क्या अब भी वही हूँ, जो कल था जिया?” चेहरे पर हँसी, पर आँखों में शाम है, कहीं तो दिल में भीगी हुई कोई बात थाम है। “क्यों थक गए हो?”, आईना बोला चुपके से, “खुद से भागते हो क्यों हर सुबह के साये […]

खुद से संवाद

खुद से संवाद…

खुद से संवाद

आईने ने पूछा — “तू अब भी सवालों में डूबी रहती है?” मैं मुस्काई — “हाँ, मैं अब भी अपने ही मन से जिरह करती हूँ… चुपचाप, गहराइयों में।” कहा उसने — “थकती नहीं तू? हर उत्तर में एक और प्रश्न उग आता है!” मैं बोली — “उत्तर नहीं थकाते… मुझे तो खामोशियाँ डराती हैं […]

खुद से संवाद

आइने की बात/प्रतियोगिता विधा/कविता खुद से संवाद आईना भी पूछता है कैसे खुश रहते हो तुम । और सबकी बात कड़वी किस तरह सहते हो तुम ।। आंँसुओं को आंँख से कैसे भला हो रोकते । गलतियां पर क्यों नहीं अपनों को हो तुम टोकते। बंधनों की बेडियो में बंध तुम रहते सदा । औरों […]

क्षणिकता का चित्र/नक्श -ए -उम्र रेत पर

विषय – क्षणिकता का चित्र / नक्श -ए -उम्र रेत पर हथेली मे थमी थी कुछ रेत की लकीरें, वो भी अब वक़्त की तरह फिसलने लगी हैं, झुर्रियों मे छुपी है बीते लम्हों की तस्वीरें, जो आंखों के सामने होकर भी धुंधली सी लगती हैं। एक हाथ मे थमी है रेतघड़ी पुरानी, टिक-टिक मे […]