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“ख़ुद से संवाद”

“ख़ुद से संवाद” थक गई थी हर रोज़ खुद को समझाने में, झूठी हँसी चेहरे पर सजाने में। हर सवाल से खुद को बचाती रही, भीतर की आहट को चुप कराती रही। दुनिया को दिखाया मजबूत सा चेहरा, पर अंदर से बिखरा था हर सवेरा। सब ठीक है ये रोज़ कहती रही, मगर सच्चाई से […]

खुद से संवाद

आईने से बात आईने में झाँका तो खुद से सवाल किया, “क्या अब भी वही हूँ, जो कल था जिया?” चेहरे पर हँसी, पर आँखों में शाम है, कहीं तो दिल में भीगी हुई कोई बात थाम है। “क्यों थक गए हो?”, आईना बोला चुपके से, “खुद से भागते हो क्यों हर सुबह के साये […]

गरीब

कट रही है ज़िन्दगी सफ़र में, दुनिया के रंगों को देखता हूँ मैं। ख़ुशबू अलग-अलग है हर चमन की, बस ग़रीबों को पिसता देख रहा हूँ मैं। सड़क हो या महल की दीवारें, मुफ़लिसी की सदा हर सिम्त पुकारे। ना रोटी मुक़द्दर में, ना सुकून कोई, हर कोना जैसे ज़ुल्मों का अफ़साना उभारे। बचपन खेल […]

अजनबी अपने ही घर में

विषय- “अजनबी अपने ही घर में ” चेहरे पे नक़ाब की चादर लिपटी हैं, जब आईने में नजर खुद से मिलती हैं, बिन कहे पलकों से बारिश गिरती हैं, कोई देख न ले…इसलिए अधरों पे मुस्कान होती हैं। यूँ तो चारों ओर से घिरी हुई हूँ, अपनो की इस भिड़ में फिर भी अकेली हूँ… […]

दरख्त

कितने स्वार्थी और मतलबी हैं ये मानव, दो गज जमीन के लिए अपनों से भी लड़ जाते हैं। वो भला मेरी पीड़ा क्या समझेंगे, जो निजस्वार्थ के लिए हमें नष्ट कर जाते हैं। कभी मेरी छाँव में बैठ अपनी थकान मिटाते थे, वहीं आज घरों में कूलर-पंखा चला, बड़े ठाठ से रहते हैं। हो रहा […]

दरख़्त

दरख़्त जैसे रिश्ते थे, हर शाख़ में बहार, अब हर सदा में तन्हाई है, दिल में है गुबार। एक दरख़्त की छाँव में, मिलते थे सब सबा, अब हर कोई जुदा है, बस हैसियत का ख़ुमार। जड़ें थीं जो मोहब्बत की, अब सूखती सी लगें, रिश्तों की नमी ग़ायब, दिल भी है ख़स्ता-ए-कार। माँ-बाप की […]