प्रतियोगिता : आइने की बात
विषय : खुद से संवाद
देख कर आईने में खुद को, मैं खुद से मिला करती हूं ।
कभी ग़म, कभी खुशियां तो कभी उदासी को परखा करती हूं।
जब रूठ जाती हूं मैं सबसे तो ,उस आईने से छुपती हूं।
लेकिन मेरी हर खुशी में मैं, आईने से बातें करती हूं।
ऐसा लगता है मुझे यह ,मेरी हकीकत दिखाता है।
खुशियों में तो हंसता है ,पर गम में यह रुलाता है।
छायी हो उदासी मुझ में तो, मुरझा सा जाता है।
अगर मैं खिलूं फूलों सी तो , यह भी खिलखिलाता है।
कुछ इसी तरह मेरा आईना, मुझसे बाते करता है।
मेरे भीतर की हकीकत से, मेरा दीदार करता है।
छुप जाती हूं मैं इससे, जब ये मन बेचैन दिखाता है।
मेरे हर दर्द और तकलीफ को ,ये खुद में ही दर्शाता है।
ऐसा लगता है जैसे ये खुद मुझसे बतलाता है।
मेरे अधूरे और अकेलेपन में , ये मेरा साथी बन जाता है।
जब मिल जाए कोई सफलता मुझे तो, यह भी मुझ पर इतराता है।
कुछ इसी तरह मेरी छुपी प्रतिभाओं से ,मेरी मुलाकात करता है।
रोज चूमती हूं मैं इसको ,क्योंकि यह मुझे मेरी हकीकत बताता है।
जो भी हूं जैसी भी हूं मैं ,यह मुझे हर हाल में अपनाता है।
स्वरचित कविता
लेखक – हेमा शाक्या