विषय – मन दोस्त या दुश्मन
ये मन का ही तो खेल है सारा , इस मन की बातें जाने कौन ,
मन की चंचलता के आगे विवश हो मानव रहता मौन,
कहते हैं कि सुन लो मन की जब समझ नहीं आए कुछ भी,
क्यों फिर तेरे खातिर निर्णय सारे लेता कोई और …?
भटक गया है राह ये जीवन , लालच और दिखावे में ,
आ गया है देखो कैसे मन के ये बहकावे में ,
आसान था जीना पहले भी जब संसाधन सारे कम थे ,
फ़र्क आ गया है अब कितना , रहने और पहनावे में …।
नहीं मान रहा अब भी ये मन, कुछ और मिले तो अच्छा है,
भेद नहीं कर पाया जग में क्या झूठा क्या सच्चा है ,
मन की सुनकर जाने कितने रिश्ते आज भी कलुषित हैं,
मन की डोरी का धागा हां थोड़ा सा कच्चा है….।
जीता सागर , अम्बर और थल को , क्यों नहीं जीतते फिर मन को,
अच्छा है मन की करना भी , पर संभाल भी लो इस जीवन को ,
जो काम विवेक से लोगे तो मन के निर्णय भी सच्चे होंगे,
मन जीत लो तुम अब अपना , न जीत सके ये मानव को..।
इतिहास है बदला वैसे तो कुछ मन की मर्जी वालों ने,
विचार नेक थे दिल में उनके , क्या नहीं किया दीवानों ने,
बात चली जब देश की हो तो देखा सबने उनका तेवर,
मन के मालिक थे सारे , सत्ता हिला दी थी मतवालों ने ।
वो लड़की थीं, रोका सबने , पर मन की सुनकर आगे आईं,
मनु नाम था उनका प्यारा सा , बन गईं थी वो लक्ष्मी बाई,
संसार त्यार दिया जिसने पर हार नहीं मानी मन से ,
उनके शौर्य के रंग में रंगकर , थी सिंदूरी उनकी तरुणाई..।
हैं जाने कितने ही उदाहरण जो मन को मित्र बनाए थे ,
वो नहीं थे केवल नाम मात्र वो अँधेरों के उजियारे थे ,
था शौक नहीं वो जीवन था जो मन के पथ पर चला गया ,
बस यही सीखना है हमको, वो कैसे इतने प्यारे थे …..।
तो आओ मिलकर प्रण कर लें, हम मन के वश में रखेंगे,
सुनेंगे तो अपने मन की पर न हावी खुद पर होने देंगे,
मन वश में है तो है मित्र सदा, जो हम झुके तो दुश्मन हो जाता,
बस याद रहे ये बात हमें, हम सोच के सारे निर्णय लेंगे….।।
काजल सिंह ज़िंदगी ✍️
फाइनल राउंड
प्रतियोगिता – बोलती कलम
अल्फ़ाज़ ए सुकून
उत्कृष्ट रचना