“ख़ुद से संवाद”
थक गई थी हर रोज़ खुद को समझाने में,
झूठी हँसी चेहरे पर सजाने में।
हर सवाल से खुद को बचाती रही,
भीतर की आहट को चुप कराती रही।
दुनिया को दिखाया मजबूत सा चेहरा,
पर अंदर से बिखरा था हर सवेरा।
सब ठीक है ये रोज़ कहती रही,
मगर सच्चाई से नज़रे चुराती रही।
एक दिन जब खामोशी ने मुझे टटोला,
तो खुद की रूह ने खुद को ही खोला।
पहली बार खुद की आवाज़ सुनी,
वो हौले से बोली,तू भी सुन ज़रा अपनी अनकहीं।
ना कोई ताज, ना कोई इल्ज़ाम था,
बस अपनी ही सिसकियों से पुराना हिसाब था।
उस दिन मैंने खुद को गले लगाया,
और भीतर का हर जख़्म सहलाया।
अब हर रोज़ थोड़ी बात खुद से करती हूँ,
भीड़ से हटकर अपनी राह धरती हूँ।
अब खुद से प्यार करना सीख लिया है,
जो टूटा था अंदर, वो धीरे-धीरे सी लिया है।
अब तन्हाई से डर नहीं लगता मुझको,
ख़ुद की चुप्पी भी गीत सी लगती मुझको।
अब ना कोई मास्क, ना कोई दिखावा है,
मेरे अंदर अब सिर्फ़ ‘मैं’ ही सच्चा है।
✍️ स्वीटी मेहता 🙏