*खुद से संवाद*
मन विचलित हो गर कभी ,
ख़ुद से बहुत बात करता हूँ
ये भी एक अच्छा प्रक्रम है ,
जहां न कोई द्वेष, न कोई भ्रम है ।
कुछ सवाल साथ चलते हैं ,
हम पाते वही है जो करते हैं ।
इस बात से कोई मलाल नहीं ,
ख़ुद से बढ़कर कोई सवाल नहीं ।
नित्य नए दिन मन में नया विचार है,
ज़िंदगी ख़ुद से लड़ने को तैयार है।
फ़र्क इतना कि खुद को समझते नहीं,
बात दिल की हम कभी कहते नहीं।
क्या है मेरा मैं अब तक समझा नहीं,
ख़ुद को कभी बेहतर तो पढ़ा नहीं ।
हार भी जाता हूँ गर उदास नहीं होता ,
ज़िंदगी की खातिर साहस नहीं खोता ।
चल रहा हूँ मैं एक तलाश में,
हर उम्मीद छुपी है हर साँस में।
जो मेरा है वो क्यों मेरा नहीं लगता,
मैं आज भी अधूरा ही सा लगता।
दिल की आवाज़ सुना तो हार गया,
परिवार को खुश किया तो प्यार गया,
क्या हर चीज़ के बदले कुर्बानी जरूरी है,
क्यों प्यार के लिए जरूरी सबकी मंजूरी है।
मैं चुप हूँ पर मुझे वक्त का इंतज़ार है,
पाऊंगा हर वो जिसपर मेरा अधिकार है।
“शाह” से आईने में आज मुलाकात किया ,
और तमाम शिकवों को दिल से आज़ाद किया !
स्वरचित:
*प्रशांत कुमार शाह*
पटना बिहार