विषय – क्षणिकता का चित्र /
नक्श -ए -उम्र रेत पर
हथेली मे थमी थी कुछ रेत की लकीरें,
वो भी अब वक़्त की तरह फिसलने लगी हैं,
झुर्रियों मे छुपी है बीते लम्हों की तस्वीरें,
जो आंखों के सामने होकर भी धुंधली सी लगती हैं।
एक हाथ मे थमी है रेतघड़ी पुरानी,
टिक-टिक मे गूंजे बीते कल की कहानी,
दूसरे से रेत फिसले जैसे सांसों की रवानी,
हर कण मे छुपी है एक उम्र की निशानी।
नक्श-ए-उम्र रेत पर यूँ ही बिखरते रहे,
हर मोड़ पर लम्हे चुपचाप बिछड़ते रहे,
थामा जिन्हें समझकर जीवन का आधार,
तो सब निकले क्षणिकता का चित्र, बस एक गुजरता विचार।
हर दिन कुछ जोड़ने मे बीता,कुछ बनने की चाह मे,
नक्श-ए-उम्र रेत पर हर मोड़ लिखा एक आह मे,
अब थक कर बैठा हूँ,सबकुछ देख चुका हूँ भीतर,
ये जीवन नहीं बस क्षणिकता का सुन्दर चित्र।
अब शिकवा नहीं कि रेत क्यों ठहरे नहीं,
हर लम्हा जिया पर कोई चीज़ मेरा नहीं,
ये चित्र अधूरा सही मगर सच्चा बहुत है,
क्षणिक ही सही पर ये जीवन मेरा बहुत है…।।
✍️Sweety mehta 🙏