विषय : खुद से संवाद
मेरे घर के आईने में ही मेरा चेहरा दिखता है,
बाक़ी बाहर तो लोगों को नकाब ही दिखता है…
..
अक्सर तन्हाई में मुझसे बातें करते दिखता है,
पूछता है सवाल,लोगों से क्यों उम्मीद रखता है…
..
तुझे आता है लिखना, तुझे सब हूबहू दिखता है,
इतना हॅसता चेहरा है,और अंदर ग़म ही दिखता है…
..
तू तो समझता है ना, फिर क्यों दलीले रखता है,
मैं जानता हूँ तुझे, तेरी आँखों में सब दिखता है…
..
अबतलक एक शख्स तुझ में बखूबी दिखता है,
तू कुछ बोले ना बोले, वो तुझमें चीखता रहता है…
..
दर्पण से दोस्ती करनी पड़ी, साफ साफ दिखता है,
मुझे मैं नहीं पसंद, लोगों को मुझ जैसा बनना है…
..
‘ कबीर ‘ बता फिर ये क्या जुल्म है, ये क्या सितम है,
नकाबपोशी में है दुनियां,और हम भी तो दुनियां है…