“ख़ुद से संवाद” थक गई थी हर रोज़ खुद को समझाने में, झूठी हँसी चेहरे पर सजाने में। हर सवाल से खुद को बचाती रही, भीतर की आहट को चुप कराती रही। दुनिया को दिखाया मजबूत सा चेहरा, पर अंदर से बिखरा था हर सवेरा। सब ठीक है ये रोज़ कहती रही, मगर सच्चाई से […]
Category: Hindi kavita
खुद से संवाद
*खुद से संवाद* मन विचलित हो गर कभी , ख़ुद से बहुत बात करता हूँ ये भी एक अच्छा प्रक्रम है , जहां न कोई द्वेष, न कोई भ्रम है । कुछ सवाल साथ चलते हैं , हम पाते वही है जो करते हैं । इस बात से कोई मलाल नहीं , ख़ुद से बढ़कर […]
खुद से संवाद
आईने में ‘मुकुल’ जब भी खुद को स्वयं के सवालों से रूबरू करता है। जाने कैसे अपने ही दिल के जख्मों को बरबस छू लिया करता है।। शिकवों, उम्मीदों, उलझनों में छुपा रखा था जो सच उसने, पाकर आईने को अपने सामने नजरें वो झुका लिया करता है। कहाँ जाऊँ, किससे कहूँ अपने दिल की […]
“आईने से एक मुलाक़ात”
“आईने से एक मुलाक़ात” आज फिर देखा मैंने — आईने में एक चेहरा झुका हुआ। होंठ खामोश, आँखें सवालों से भरी, जैसे कुछ कहना चाहता हो… पर कह नहीं पा रहा। मैंने पूछा — “कौन हो तुम?” वो बोला — “मैं वही… जिसे तूने छुपा रखा है। तेरे मुस्कुराते चेहरे के पीछे, तेरी टूटी हुई […]
खुद से संवाद
आईने से बात आईने में झाँका तो खुद से सवाल किया, “क्या अब भी वही हूँ, जो कल था जिया?” चेहरे पर हँसी, पर आँखों में शाम है, कहीं तो दिल में भीगी हुई कोई बात थाम है। “क्यों थक गए हो?”, आईना बोला चुपके से, “खुद से भागते हो क्यों हर सुबह के साये […]
खुद से संवाद
खुद से संवाद…
खुद से संवाद
आईने ने पूछा — “तू अब भी सवालों में डूबी रहती है?” मैं मुस्काई — “हाँ, मैं अब भी अपने ही मन से जिरह करती हूँ… चुपचाप, गहराइयों में।” कहा उसने — “थकती नहीं तू? हर उत्तर में एक और प्रश्न उग आता है!” मैं बोली — “उत्तर नहीं थकाते… मुझे तो खामोशियाँ डराती हैं […]
खुद से संवाद
आइने की बात/प्रतियोगिता विधा/कविता खुद से संवाद आईना भी पूछता है कैसे खुश रहते हो तुम । और सबकी बात कड़वी किस तरह सहते हो तुम ।। आंँसुओं को आंँख से कैसे भला हो रोकते । गलतियां पर क्यों नहीं अपनों को हो तुम टोकते। बंधनों की बेडियो में बंध तुम रहते सदा । औरों […]
क्षणिकता का चित्र/नक्श -ए -उम्र रेत पर
विषय – क्षणिकता का चित्र / नक्श -ए -उम्र रेत पर हथेली मे थमी थी कुछ रेत की लकीरें, वो भी अब वक़्त की तरह फिसलने लगी हैं, झुर्रियों मे छुपी है बीते लम्हों की तस्वीरें, जो आंखों के सामने होकर भी धुंधली सी लगती हैं। एक हाथ मे थमी है रेतघड़ी पुरानी, टिक-टिक मे […]