“भीगती दुआएं और सूखे इरादे”
हर रोज़ दुआएं भीगती रहीं,
आँखों से चुपचाप निकलती रहीं।
लब खामोश,पर दिल पुकारता था,
हर दर्द को वो खुद पर वारता था।
बादल से बातें,चाँद से वादा,
पर अंदर कहीं सूखा था इरादा।
जो कल तलक तूफ़ानों से लड़ा था,
अब ठहरा हुआ,जैसे थककर पड़ा था।
भीगी सी यादें,भीगे अफसाने,
हर रात में जागे टूटे फसाने।
मगर हौसलों की ज़मीं पड़ी सूखी,
बिखरे थे सपने, बेमन, अधूरी, रूठी।
मन मांगे बारिश,पर साहस ना जागे,
कदम रुके, जैसे थक जाए रागे।
बस आंखों से निकले कुछ भीगे सवाल,
कब होंगे पूरे ये बिखरे ख़्याल?
ना कम थी दुआ,ना सच्चाई उसमें,
पर जान न थी अब कोशिश के रस्में।
जो बीज बोया था जज़्बे के साथ,
अब प्यासा पड़ा है वो सूनी सी बात।
चलो फिर से दुआओं को उम्मीद दें,
सूखे इरादों को थोड़ी सी नींद दें।
शायद फीर से हरियाली आएगी,
जब हिम्मत भी दुआ में समाएगी।
✍️ स्वीटी मेहता 🙏