Category: Hindi kavita

खुद से संवाद

आईने में ‘मुकुल’ जब भी खुद को स्वयं के सवालों से रूबरू करता है। जाने कैसे अपने ही दिल के जख्मों को बरबस छू लिया करता है।। शिकवों, उम्मीदों, उलझनों में छुपा रखा था जो सच उसने, पाकर आईने को अपने सामने नजरें वो झुका लिया करता है। कहाँ जाऊँ, किससे कहूँ अपने दिल की […]

“आईने से एक मुलाक़ात”

“आईने से एक मुलाक़ात” आज फिर देखा मैंने — आईने में एक चेहरा झुका हुआ। होंठ खामोश, आँखें सवालों से भरी, जैसे कुछ कहना चाहता हो… पर कह नहीं पा रहा। मैंने पूछा — “कौन हो तुम?” वो बोला — “मैं वही… जिसे तूने छुपा रखा है। तेरे मुस्कुराते चेहरे के पीछे, तेरी टूटी हुई […]

खुद से संवाद

आईने से बात आईने में झाँका तो खुद से सवाल किया, “क्या अब भी वही हूँ, जो कल था जिया?” चेहरे पर हँसी, पर आँखों में शाम है, कहीं तो दिल में भीगी हुई कोई बात थाम है। “क्यों थक गए हो?”, आईना बोला चुपके से, “खुद से भागते हो क्यों हर सुबह के साये […]

खुद से संवाद

खुद से संवाद…

खुद से संवाद

आईने ने पूछा — “तू अब भी सवालों में डूबी रहती है?” मैं मुस्काई — “हाँ, मैं अब भी अपने ही मन से जिरह करती हूँ… चुपचाप, गहराइयों में।” कहा उसने — “थकती नहीं तू? हर उत्तर में एक और प्रश्न उग आता है!” मैं बोली — “उत्तर नहीं थकाते… मुझे तो खामोशियाँ डराती हैं […]

खुद से संवाद

आइने की बात/प्रतियोगिता विधा/कविता खुद से संवाद आईना भी पूछता है कैसे खुश रहते हो तुम । और सबकी बात कड़वी किस तरह सहते हो तुम ।। आंँसुओं को आंँख से कैसे भला हो रोकते । गलतियां पर क्यों नहीं अपनों को हो तुम टोकते। बंधनों की बेडियो में बंध तुम रहते सदा । औरों […]

क्षणिकता का चित्र/नक्श -ए -उम्र रेत पर

विषय – क्षणिकता का चित्र / नक्श -ए -उम्र रेत पर हथेली मे थमी थी कुछ रेत की लकीरें, वो भी अब वक़्त की तरह फिसलने लगी हैं, झुर्रियों मे छुपी है बीते लम्हों की तस्वीरें, जो आंखों के सामने होकर भी धुंधली सी लगती हैं। एक हाथ मे थमी है रेतघड़ी पुरानी, टिक-टिक मे […]

आदमी चुतिया है.

आदमी चुतिया है… बीवी को कहे — घर बैठ, “बहू का धर्म है चुप रहना”, खुद चले क्लब में ठुमके लगाने, और कहे — “मर्द का तो हक़ है जीने का!” आदमी चुतिया है… बेटा फेल हो तो बोले — “सिस्टम ही सड़ा हुआ है!” पड़ोसी की बेटी टॉपर हो जाए, तो बोले — “कुछ […]

सबका इंतजार करती मां

प्रतियोगिता – बागवान विषय – सबका इंतजार करती मां सबको भोज खिला कर खुद भूखी सोती मां घर में सब जब सो जाते चुपके से हैं रोती मां बूढ़ी आँखें रास्ता देखें अपने लाल दुलारों का बैठकर दहलीज पर सबका इंतजार करती मां जन्म देने को तुझे प्रसवपीड़ा भी हैं वो उठाती बनाकर आंचल का […]

बदलाव की आंधियां

प्रतियोगिता – बूझो तो जाने विषय – बदलाव की आंधियां *Not for Marking* थामी हैं कलम तो क्रांति भी हमे लानी होगी अन्याय के विरुद्ध आवाज़ हमे उठानी होगी कलम ही जरिया हैं बदलाव का एक शिवोम बदलाव की आंधियां भी हमे लानी ही होगी धर्म कोई हो साथ मिल देश को आगे बढ़ाना एकता […]