Category: Hindi kavita

मन दोस्त या दुश्मन

हे मानव! मैं मन बस अपनी ही तुझपे मैं चलाता हूं , लोभ माया सही गलत के पहलू में तुझे फंसाता हूं , मेरी माया हैं बड़ी अनोखी मायाजाल मैं फैलाता हूं , कितने कठिन जतन करता तब मैं मन कहलाता हूं । धन बढ़ते ही तेरे पास, मैं लोभी मन बन जाता हूं , […]

मन दोस्त या दुश्मन

विषय – मन दोस्त या दुश्मन ये मन का ही तो खेल है सारा , इस मन की बातें जाने कौन , मन की चंचलता के आगे विवश हो मानव रहता मौन, कहते हैं कि सुन लो मन की जब समझ नहीं आए कुछ भी, क्यों फिर तेरे खातिर निर्णय सारे लेता कोई और …? […]

मन:दोस्त या दुश्मन?

मन दोस्त या दुश्मन आओ आज सभी को मन की बात बताते हैं, अवस्था के अनुसार मन की लीलाएं दर्शाते हैं, जैसी उम्र वैसी इच्छाएं होती जाती हैं मन की, आज इसके रूपों को विस्तार से समझाते हैं। बचपन में मन में बहुत सी लालसाएं जागती हैं, ज्ञानेंद्रियां इस मन को विचलित कर भागती हैं, […]

मन, दोस्त या दुश्मन

भावों की लहरें, उमंगों की धार, गहराइयों में छिपे अनगिनत विचार। कभी चुपचाप, कभी प्रचंड, अनवरत चलता इसका द्वंद्व। उठती तरंगें, बहती हवाएँ, कभी सुलझे, कभी उलझ जाएँ। आशाओं की बूँदें गिरें, तो नवसृजन की राहें मिलें। निर्णय का पुल जब बनता है, हर संकट क्षीण सा लगता है। संयम इसकी रीढ़ बने, तो हर […]

मन दोस्त या दुश्मन ?

मन दोस्त या दुश्मन ? जिंदगी एक सुहाना सफ़र है, खुशियाँ है,कभी यहां ग़म है… दिल है चंचल, करता बवाल, मन का कहा,दिल भी माने है… .. मन की सुनना है बहुत जरूरी, मन में दृढ़ता होना है जरूरी… मन अधीन विचार रहे प्रबल, मन है संतुष्ट, जीवन में संयम… … मन है दोस्त, मन […]

गरीब

कट रही है ज़िन्दगी सफ़र में, दुनिया के रंगों को देखता हूँ मैं। ख़ुशबू अलग-अलग है हर चमन की, बस ग़रीबों को पिसता देख रहा हूँ मैं। सड़क हो या महल की दीवारें, मुफ़लिसी की सदा हर सिम्त पुकारे। ना रोटी मुक़द्दर में, ना सुकून कोई, हर कोना जैसे ज़ुल्मों का अफ़साना उभारे। बचपन खेल […]

अनहोनी एक अंदेशा

विषय – अनहोनी : एक अंदेशा लफ्ज़ों से बयां हो हर बार परेशानियां जरूरी तो नहीं , कभी – कभी कोई अनकहा एहसास ही काफी होता है , कभी घबराहट सी महसूस होती है तो कभी चैन नहीं मिलता , दिल ही दिल में किसी होने वाली अनहोनी का अंदेशा होता है । एक मां […]

अनहोनी, एक अंदेशा

अनहोनी , एक अंदेशा – प्रशांत कुमार शाह ना ज़िंदगी का कुछ पता है, ना अब किसी से कोई ख़ता है। जो होना है वो होगा ही अब, बस देखा जाएगा तब का तब। हर अनहोनी का अंदेशा होता है, इसके बाद इंसान ख़ूब रोता है। पर इस पर अब ज़ोर किसका है, ये तो […]

अनहोनी, इक अंदेशा

प्रतियोगिता ~ बोलती कलम विषय ~ अनहोनी , इक अंदेशा कल नही तो आज होगा , होगा वही जो होना होगा , फल की इच्छा की है तो बीज भी अच्छा बोना होगा , अनहोनी जब होती है, हम निःशब्द और दिमाग शून्य हो जाता है , हमारे सारे कर्मो का परिणाम ही हमारे खाते […]

अनहोनी, एक अंदेशा

जब हवा में अजीब सी गंध हो, और समय ठहरा सा लगे, तब मन में उठता है एक प्रश्न, क्या अनहोनी दस्तक दे रही है? पर क्या हर अनहोनी पहले से चेताती? या फिर वह अचानक से आ जाती! निर्दयी, अचंभित कर देने वाली, जैसे बिजली गिरती है साफ़ आसमान पर। वातावरण में सहसा पक्षियों […]