अनहोनी एक अंदेशा

विषय – अनहोनी : एक अंदेशा

लफ्ज़ों से बयां हो हर बार परेशानियां जरूरी तो नहीं ,
कभी – कभी कोई अनकहा एहसास ही काफी होता है ,
कभी घबराहट सी महसूस होती है तो कभी चैन नहीं मिलता ,
दिल ही दिल में किसी होने वाली अनहोनी का अंदेशा होता है ।

एक मां ने सुबह उठते ही बेटी से कहा ,
आज थोड़ा कठिन रहने वाला है शायद दिन तुम्हारा …
आज परीक्षा है तो ध्यान से लिखना ,
जो जरूरी है उसको फिर से पढ़ लेना ।

गौर नहीं किया बेटी ने वो बोली , मां सब याद है मुझे,
अब बच्ची नहीं हूं मैं फिर इतनी चिंता क्यों है तुझे ,
मैं संभाल लूंगी तुम परेशान मत होना ,
बस अपनी बेटी को अपना आशीर्वाद देना ।

भेज तो दिया स्कूल पर मन में ढेरों आशंकाएं थीं,
जो बेचैनी थी वो ऐसे कहां मिटने वाली थी ,
दोपहर तक इंतज़ार किया बड़ी बेसब्री से ,
वो मां है कहां सुकून से सो सकने वाली थी..?

स्कूल से लौट के आई बेटी, बहुत उदास थी ,
मां की तरफ देखकर चुपचाप बैठी पास थी ,
आँखें नम करके खामोशी में कुछ कहा,
मां होने वाला है कुछ गलत कैसे पता था आपको ..?

मां ने कहा कि न हो उदास जो हुआ है जाने दो ,
मैंने कहा था अपना अंदेशा मुझे हुआ था जो ,
दिल है मां का अनहोनी को पहचान लेता है,
शायद इसीलिए ऐसी चीजों का पता चल जाता है ।

मां आगे से मैं आपकी बातों का ध्यान रखूंगी,
वहीं करूंगी मैं जो आप कहेंगी,
कहते हैं मां भगवान का रूप होती है आज देख भी लिया,
कैसे आपने अपने आप से मुझे आगाह किया ।

खुशनसीब हूं मैं कि आप मेरी मां हो ,
मुझे मिली बिन मांगी कोई दुआ हो ,
हे रब मुझे हर जन्म यही मां मिले ,
जो मुझे हर अनहोनी से बचा के रखे ।।

काजल सिंह ज़िंदगी ✍️
राउंड फोर
प्रतियोगिता – बोलती कलम
अल्फ़ाज़ ए सुकून

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