मन, दोस्त या दुश्मन

भावों की लहरें, उमंगों की धार,
गहराइयों में छिपे अनगिनत विचार।
कभी चुपचाप, कभी प्रचंड,
अनवरत चलता इसका द्वंद्व।

उठती तरंगें, बहती हवाएँ,
कभी सुलझे, कभी उलझ जाएँ।
आशाओं की बूँदें गिरें,
तो नवसृजन की राहें मिलें।

निर्णय का पुल जब बनता है,
हर संकट क्षीण सा लगता है।
संयम इसकी रीढ़ बने,
तो हर राह में दीप जले।

अहंकार जब बढ़ने लगे,
परछाइयाँ सघन होने लगे।
सच की धारा जब बहे,
तब अंधियारा भी मिट जाए।

स्वप्न यहाँ आकार लेते हैं,
संघर्ष यहाँ संकल्प बनते हैं।
हर क्षण में छिपी है शक्ति,
पर दिशा मिले तो सार बनते हैं।

गहराई इसकी अनमोल है,
स्मृति में बसा एक संसार है।
निज स्वरूप को पहचानो,
हर क्षण को ज्योति से सजाओ।

भ्रम हटाकर आगे बढ़ो,
सत्य की ज्योति मन में गढ़ो।
निर्भय होकर पथ चुनो,
उत्थान का यह अवसर सुनो।

मन के खेल को समझो तुम,
सतत सजग, सतत संयम।
मन ही जीवन की है चाबी,
इसे सहेजो, इसे संभालो तुम अभी।

लेखक – Mukul Tiwari
Round – Final
प्रतियोगिता – बोलती कलम

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