🌧️ “मौसम बदला, पर मन नहीं…”

“मौसम बदला, पर मन नहीं…” सावन आया है फिर से, बूंदें टपक रही हैं छतों से, कहीं भीगती हैं आशाएं, तो कहीं टपकते हैं बस छप्पर। सड़क किनारे बैठा वो बचपन, जिसे ना छत मिली, ना बस्ता, वो आज भी उसी मिट्टी में खेल रहा है, जहाँ कल कीचड़ था, और आज उम्मीदें भीग रही […]

भीगती दुआएं और सूखे इरादे

“भीगती दुआएं और सूखे इरादे” हर रोज़ दुआएं भीगती रहीं, आँखों से चुपचाप निकलती रहीं। लब खामोश,पर दिल पुकारता था, हर दर्द को वो खुद पर वारता था। बादल से बातें,चाँद से वादा, पर अंदर कहीं सूखा था इरादा। जो कल तलक तूफ़ानों से लड़ा था, अब ठहरा हुआ,जैसे थककर पड़ा था। भीगी सी यादें,भीगे […]

भीगती दुआएँ और सूखे इरादे

भीगती दुआएँ और सूखे इरादे भीगती हैं दुआएँ हर रोज़ बेआवाज़, माँ की आँखों से गिरती एक चुप सी आस। वो मंदिर-मस्जिद में हाथ उठाते हैं सब, पर दिलों में छुपा फिर भी संदेह का अल्पविराम। सूखे हैं इरादे, जो कभी सागर जैसे थे, आज स्वार्थ की धूप में दरारों से भरे हैं। वो जो […]

भीगते जज़्बात

“भीगते जज़्बात” दिल के पन्नों पर कुछ भीगे लफ़्ज़ रखे हैं, तेरे बिना भी हर पल तुझमें है जिए हैं, हर ख़ामोशी में तू पुकारा गया है, हर आँसू में बस तू ही उतारा गया है। चाहा था तुझे बस अल्फ़ाज़ से नहीं, तेरी हर बात में खुद को ही पाया कहीं, मगर तू गया […]

आईना

*आईना सफलता की पूंजी है*:- आईना मेरी पहचान ;कैसे बना?? साल *2013 जून* महीने की बात है!! जिंदगी !! में जहां हर जगह खुद को *आज़मा* लिया था, मैंने! जिंदगी से *अलग सी रहने* लगने का मोड़ आया था?? मैं जो भी *आत्मविश्वास से भरी सुरभि* आज बनी हूं..।। बखुबी में *”आइने से सिखाई”* राह […]

खुद से संवाद

टॉपिक ___ खुद से संवाद सुनो यारा जब से जिंदगी से तुम्हारा जाना हुआ है, क्या कहूं कि मेरा ये दिल मुझसे अनजाना हुआ है। तुम कभी नहीं आओगी ये इल्म रहेगा मुझे लेकिन, दिल के मंदिर में बस तुम्हारा आना जाना हुआ है। मैंने खुद को झूठी तसल्ली भी देना बंद कर दिया है, […]

आइने

आइने के टुकड़ों में दिखते हैं रूप अनेक कुछ सच्चे कुछ झूठे किस्से है अभेद हर टुकड़ा बताता है अपना स्वरूप कुछ हंसी कुछ वीरानी लिए चेहरे पर लगते है चेहरे अनेक खा कर धोखा मै खुद को न पहचान पाई जब चेहरे पर चेहरा नया चढ़ जाए आइने तो है ऐसा लेकर बैठा रहस्य […]

खुद से संवाद मेरा आईना

प्रतियोगिता : आइने की बात विषय : खुद से संवाद देख कर आईने में खुद को, मैं खुद से मिला करती हूं । कभी ग़म, कभी खुशियां तो कभी उदासी को परखा करती हूं। जब रूठ जाती हूं मैं सबसे तो ,उस आईने से छुपती हूं। लेकिन मेरी हर खुशी में मैं, आईने से बातें […]

ख़ुद का हूं मैं आईना

प्रतियोगिता- आईने की बात ” ख़ुद का हूं मैं आईना ” जब-जब मैं ख़ुद को देखा करती ख़ुद से ही बातें किया करती । ख़ुद ही बन जाती ख़ुद का आईना जब ज़िंदगी मुझसे दगा करती ।। कह देती हूं दिल की सारी बात जब बिगड़ जाते जीवन के सारे हालात स्वयं को निहारती स्वयं […]