प्रतियोगिता – बागवान विषय – सबका इंतजार करती मां सबको भोज खिला कर खुद भूखी सोती मां घर में सब जब सो जाते चुपके से हैं रोती मां बूढ़ी आँखें रास्ता देखें अपने लाल दुलारों का बैठकर दहलीज पर सबका इंतजार करती मां जन्म देने को तुझे प्रसवपीड़ा भी हैं वो उठाती बनाकर आंचल का […]
Category: Hindi kavita
बदलाव की आंधियां
प्रतियोगिता – बूझो तो जाने विषय – बदलाव की आंधियां *Not for Marking* थामी हैं कलम तो क्रांति भी हमे लानी होगी अन्याय के विरुद्ध आवाज़ हमे उठानी होगी कलम ही जरिया हैं बदलाव का एक शिवोम बदलाव की आंधियां भी हमे लानी ही होगी धर्म कोई हो साथ मिल देश को आगे बढ़ाना एकता […]
मन दोस्त या दुश्मन
हे मानव! मैं मन बस अपनी ही तुझपे मैं चलाता हूं , लोभ माया सही गलत के पहलू में तुझे फंसाता हूं , मेरी माया हैं बड़ी अनोखी मायाजाल मैं फैलाता हूं , कितने कठिन जतन करता तब मैं मन कहलाता हूं । धन बढ़ते ही तेरे पास, मैं लोभी मन बन जाता हूं , […]
मन दोस्त या दुश्मन
विषय – मन दोस्त या दुश्मन ये मन का ही तो खेल है सारा , इस मन की बातें जाने कौन , मन की चंचलता के आगे विवश हो मानव रहता मौन, कहते हैं कि सुन लो मन की जब समझ नहीं आए कुछ भी, क्यों फिर तेरे खातिर निर्णय सारे लेता कोई और …? […]
मन:दोस्त या दुश्मन?
मन दोस्त या दुश्मन आओ आज सभी को मन की बात बताते हैं, अवस्था के अनुसार मन की लीलाएं दर्शाते हैं, जैसी उम्र वैसी इच्छाएं होती जाती हैं मन की, आज इसके रूपों को विस्तार से समझाते हैं। बचपन में मन में बहुत सी लालसाएं जागती हैं, ज्ञानेंद्रियां इस मन को विचलित कर भागती हैं, […]
मन, दोस्त या दुश्मन
भावों की लहरें, उमंगों की धार, गहराइयों में छिपे अनगिनत विचार। कभी चुपचाप, कभी प्रचंड, अनवरत चलता इसका द्वंद्व। उठती तरंगें, बहती हवाएँ, कभी सुलझे, कभी उलझ जाएँ। आशाओं की बूँदें गिरें, तो नवसृजन की राहें मिलें। निर्णय का पुल जब बनता है, हर संकट क्षीण सा लगता है। संयम इसकी रीढ़ बने, तो हर […]
मन दोस्त या दुश्मन ?
मन दोस्त या दुश्मन ? जिंदगी एक सुहाना सफ़र है, खुशियाँ है,कभी यहां ग़म है… दिल है चंचल, करता बवाल, मन का कहा,दिल भी माने है… .. मन की सुनना है बहुत जरूरी, मन में दृढ़ता होना है जरूरी… मन अधीन विचार रहे प्रबल, मन है संतुष्ट, जीवन में संयम… … मन है दोस्त, मन […]
गरीब
अनहोनी एक अंदेशा
विषय – अनहोनी : एक अंदेशा लफ्ज़ों से बयां हो हर बार परेशानियां जरूरी तो नहीं , कभी – कभी कोई अनकहा एहसास ही काफी होता है , कभी घबराहट सी महसूस होती है तो कभी चैन नहीं मिलता , दिल ही दिल में किसी होने वाली अनहोनी का अंदेशा होता है । एक मां […]
अनहोनी, एक अंदेशा
अनहोनी , एक अंदेशा – प्रशांत कुमार शाह ना ज़िंदगी का कुछ पता है, ना अब किसी से कोई ख़ता है। जो होना है वो होगा ही अब, बस देखा जाएगा तब का तब। हर अनहोनी का अंदेशा होता है, इसके बाद इंसान ख़ूब रोता है। पर इस पर अब ज़ोर किसका है, ये तो […]