विषय- अजनबी अपने ही घर में
है पास मेरे कहने को बहुत कुछ,
पर आजकल मैं खामोश सी हो गई हूँ,
गुम हूँ न जाने कौन सी दुनिया में,
मैं अजनबी अपने ही घर में हो गई हूँ।
कहने सुनने को कोई नहीं है अपनों में,
इसलिए मैं कलम की अपनी सी हो गई हूँ,
ठानी है अब अधरों से कुछ न कहने की,
मैं अब कोरे कागज़ पर कहानी सी हो गई हूँ।
नादान कह कर मुझे वो कैद करते हैं,
पर क्या जाने मैं बंधनों से मुक्त सी हो गई हूँ,
लिए सप्तरंगी सपने अपनी आँखों में,
मैं तो लेखन के उनमुक्त गगन में खो सी गई हूँ।
आजकल मन रमता है मेरा शब्दों में,
नये विचारों से खुद को भर सी रही हूँ,
अब भूल कर सभी बेमानी बातों को,
सिर्फ ‘अल्फ़ाज़-ए-सुकून’ बयां कर रही हूँ।
आजकल अनजान मुझे मेरे अपने कह रहे हैं,
दुनिया भूल मैं खुद ही खुद की दुनिया हो गई हूँ,
जब थामा है कलम को मैनें हाथों में,
मैं सबकी नजरों में ‘बेकार’ सी हो गई हूँ।
वो अपने समझेंगे क्या मन को मेरे,
क्योंकि उनकी समझ के विपरीत सी हो गई हूँ,
चाहते हैं वह मुझे शांत सा सागर बनाना,
पर मैं तो चंचल नदी सी एक लेखिका हो गई हूँ।
– नेहा प्रसाद ‘नेह’
क्वालीफायर राउंड
प्रतियोगिता नाम- बोलती कलम
अल्फ़ाज़ ए सुकून
ये सच में बहुत सुंदर भावव्यंजना है नेहा जी ✨👌🏻