“”अजनबी अपने घर में “”
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जब जीवन साथी न दे तुम्हारा,
साथ न पकड़े तुम्हारा हाथ,
रुसवा कर दे तुमको रिश्तेदारों,
के, बीच न हो तुम्हारा सम्मान,
तब महसूस होता है तुम अजनबी,
हो अपने घर में……
जब बच्चे बड़े हो जाय तुमको
संग,अपने न रखना चाहें
अपनी दुनिया, सजाकर
तुमको अकेला कर जाएं,
तब तुमको महसूस होता है तुम,
अजनबी हो अपने घर में…..
जब माँग सुनी हो जाय सभी हँसते
खेलते रंग बिरंगे उत्सव मनाये,
तुम कोने में खड़े अकेलेपन को
गले लगाएं टीसता दर्द कहीं राहत
न पाएं, तब महसूस होता है कि
तुम अजनबी हो अपने घर में……
शादी के बाद जब लड़की घर आए,
उसको मायका का आँगन न बुलाये,
पिता भाई मां उसको पराया बुलाये,
उसके जाने के दिन गिनाये तब
महसूस होता है कि तुम अजनबी
हो अपने घर में……
जब पिता सेवा निवृत्त हो जाय,
किसी को कुछ न दे पाएं बुढ़ापे
की लाठी थामें नजर आए तो सीख
के कुछ क्षण भी किसीको बर्दाश्त,
न हो पाए तब महसूस होता है ,
कि तुम अजनबी हो अपने घर में……..
जब तुम्हारा प्रेम विवाह हो जाय,
समाज से स्वीकृति न तुमको मिल,
पाएं, परिवार तुम से नज़रे चुराए ,
प्यार सम्मान देने में आँख दिखाए ,
तब महसूस होता है कि तुम ,
अजनबी हो तुम अपने घर में………….
तुम अजनबी हो अपने घर में…!!
रुचिका जैन 🙏
क्वालिफाइड राउंड
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