भावों की लहरें, उमंगों की धार, गहराइयों में छिपे अनगिनत विचार। कभी चुपचाप, कभी प्रचंड, अनवरत चलता इसका द्वंद्व। उठती तरंगें, बहती हवाएँ, कभी सुलझे, कभी उलझ जाएँ। आशाओं की बूँदें गिरें, तो नवसृजन की राहें मिलें। निर्णय का पुल जब बनता है, हर संकट क्षीण सा लगता है। संयम इसकी रीढ़ बने, तो हर […]
Tag: #बोलती_कलम
जलवायु परिवर्तन, कौन जिम्मेदार
हवा में घुलता धुआँ, पेड़ों का कटना, प्रकृति के आँसू, धरती का सिसकना। कड़ी धूप, कड़ी बारिश, करते बेकरार, जलवायु परिवर्तन, कौन जिम्मेदार? कारखानों की चिमनी, उगलती ज़हर, लालच का धुआँ, बनाता है काला अंधड़। मानव की चाहत, विकास की होड़, पृथ्वी की छाती पर, दे रहा वो गहरी चोट। नदियाँ सूखतीं, समंदर उफनता, ग्लेशियर […]
अजनबी अपने ही घर में
अजनबी अपने ही घर में, खोया सा मन, राहों में भटके। दीवारें चुप, साये ठहरे, यादें पुरानी, अब सपनों में थके। कभी हंसी गूंजी, आंगन में, बच्चों के कदम, माँ की लोरी। अब सन्नाटा, बस गूंजता है, खालीपन की एक उदास चोरी। खिड़की से झांकता, बाहर का मेला, पर दिल में कहीं, बस्ती है वीरान। […]