हवा में घुलता धुआँ, पेड़ों का कटना,
प्रकृति के आँसू, धरती का सिसकना।
कड़ी धूप, कड़ी बारिश, करते बेकरार,
जलवायु परिवर्तन, कौन जिम्मेदार?
कारखानों की चिमनी, उगलती ज़हर,
लालच का धुआँ, बनाता है काला अंधड़।
मानव की चाहत, विकास की होड़,
पृथ्वी की छाती पर, दे रहा वो गहरी चोट।
नदियाँ सूखतीं, समंदर उफनता,
ग्लेशियर पिघलता, जीवन सिसकता।
हरियाली खोकर, रेगिस्तान बढ़ता,
जलवायु परिवर्तन,कौन जिम्मेदार?
मनुष्य का मन हर रोज ये सोचता।
हाँ है ये मनुष्य की गलती, मनुष्य की भूल,
लोभ की आग में, उसने जलाया जंगल का हर फूल।
पर अब भी वक्त है, संभलने का मिला है मौका,
आओ मिलकर प्रकृति को बचाएँ,
ताकि भविष्य में न मिले उससे कोई धोखा।
सब मिलकर हाथ मिलाएँ, करें एक शुरुआत,
हर कदम में बस, करनी है पर्यावरण की बात।
जलवायु की रक्षा करने का है अब संकल्प हमारा
आओ धरती माँ को लौटाएँ, उनका सौन्दर्य सारा।
लेखक – मुकुल तिवारी “अल्हड़”
विषय – जलवायु परिवर्तन, कौन जिम्मेदार
राउंड – 3
प्रतियोगिता – बोलती कलम