अनहोनी, एक अंदेशा
किस्मत के आगे कब किसकी चलती है,
इंसां है महज पुतला,बस यही कहती है…
अभिलाषाये, इच्छाएं तो सब में होती है,
वक़्त है कहता,उसपे किसकी चलती है…
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जीवन है संघर्ष सारी कहानियाँ कहती है,
अल्फाज है सुकून,दुनियां बेरहम लगती है..
वक़्त भी है अजीब, लगाम खींच रखता है,
राजा कब रंक हो, पता नहीं लगने देता है…
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दफ़ातन आता है,बुरा वक़्त ये कहता है
कितना संचय करा,सब यही रह जाता है…
पल भर में इंसां फिर मिट्टी बन जाता है,
जरा भी अंदेशा ना, कब-क्या हो जाता है…
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सफऱ-ए हयात हर हाल में पूरा करना है,
अनहोनी से लड़ तुझे आगे बढ़ते रहना है…
बुरा वक़्त,विपदाये लाख आये सहना है,
सफ़र का है यही नियम, तुझे चलना है…
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सुनो अच्छाई को भी बुरा दर्पण मिलता है
कभी कभी रण में,पाप सत्य को छलता है…
निष्ठुर है जीवन चक्र,एक का हो,ना रहता है,
कभी खुशी कभी ग़म,तुझे सजोय रखता है…
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इंसान है आखिर, इंसां साथ यही मसला है,
भय रखता मृत्यु से,मृत्यु ही अटल सत्य है…
यही अंतिम पड़ाव,चल रहा जो जीवन चक्र है,
वक़्त की हेरा-फेरी, हर मोड़ पे यहां संघर्ष है…
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अनहोनी एक कहर है, हमें लगता जहर है,
पर पता नहीं किसे,यहां कब क्या होता है…
अकस्मात ही होती घटना, याद रखना है,
तुम हो तुम में, तुम्हें खुद का साथ देना है…
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जनता से ना पूछो, उन्हें तो सौदा करना है,
हर शख्स लगा है गिराने,तुम्हें सभलना है…
अनहोनी तो होती है, पर सहारा बनना है,
तुम्हें अनकही विपदाओ से यूँही लड़ना है…
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कबीर रखे विश्वास खुद पे,दूसरों से ज्यादा,
वक़्त का है गुलाम , हर शख्स यही कहता…
सफऱ बनेगा हसीन, जितना जीना सीखोगे,
तो चल राही चलते है,चलना ही तो जीना है…
~Kabir pankaj
राउंड चतुर्थ