अनहोनी इक अंदेशा

कभी – कभी कुछ होने से पहले ही हमें पता चल जाता हैं ,
वक्त भी किसी ना किसी बहाने से हमें अंदेशा दे जाता हैं ,
किसी भी रूप में आकर हमारे अंतर्मन को हिला जाता हैं ,
होनी और अनहोनी के मध्य का अंतर हमें बता जाता है ।

एक बच्ची पूछती हैं , चाचा ऐसी अनहोनी होती ही क्यों है ,
क्यों हमारी मां हमे बचपन से छोड़ अपने घर वो रहती है..
क्या कसूर हम बहनों का भगवान जो ममता छिनती हैं ,
क्यों हमारी मां को हमारी कमी भी नहीं कभी खलती हैं ..?

शराब में ऐसा क्या नशा जो पापा को बेटियां नहीं दिखती ,
ऐसी अनहोनी हैं पापा से कभी एक चाकलेट नहीं मिलती ,
बीमार हैं पापा माना लेकिन सिगरेट से कौन बीमारी मिटती ,
क्यों हमें उनके हाथों से प्यार और दुलार कभी नहीं मिलती..?

दहेज़, गर्भपात तो कभी दरिंदो की वहशी नज़र का शिकार,
बचपन से मिलता हैं हम बेटियों को ही सिर्फ क्यों आघात ,
तन का तो छोड़ो भगवन यहां मन का हो जाता बलात्कार ,
क्यों हमें कभी दिखता नहीं है प्रभु तुम्हारा कोई चमत्कार.??

होनी अनहोनी का खेल हम बेटियां बचपन में सीख जाती,
कभी मिलती हमे डांट तो कभी सूखी रोटी हिस्से में आती,
हम भी अंदेशा लगा कर धीरे – धीरे आगे को बढ़ते हैं अब,
पता हैं हमे बेटियों की जिंदगी अनहोनियों से सजी होती ,

होते सपने हमारे भी क्यों उनपर अंकुश लगा दिया जाता ,
क्यों हमारी आवाज़ को बिन बोले ही दबा दिया हैं जाता,
माना लड़की हूं लेकिन कमजोर नहीं कितनी बार बताऊं ,
क्यों इच्छाओं को ही जिम्मेदारी के नाम से कुचला जाता..?

अनहोनियाँ भी हमे शिवोम बहुत कुछ सीखा कर जाती हैं ,
जीवन पथ पे आगे कैसा बढ़ना राह भी दिखा के जाती हैं ,
हर चुनौतियों को स्वीकारना हम सीख गए हैं अब भगवन,
होनी हो या अनहोनी कोई अब मन में भय नहीं लाती हैं ।

आदर्श हैं हमारी लक्ष्मीबाई जैसी अनेकोंं वीरांगनाएं शिवोम,
उसी जज्बे से हम अनहोनी को मात देके आगे को हैं बढ़ती,
पड़े जरूरत तो श्रृंगार त्याग मां काली का रूप भी हैं धरती,
फिर भी आज लड़कियों को ये दुनियां कमजोर क्यों कहती..?

करना कठिन हैं पर इस अनहोनी को रोका जा सकता हैं ,
समय रहते ही टूट चुके जज्बातों को सिला जा सकता हैं ,
होनी अनहोनी भी आख़िर पता चल ही जाती हैं शिवोम,
बस दिल को मजबूत , दिमाग को थोड़ा खोलना पड़ता हैं..।।

✍️ ✍️ शिवोम उपाध्याय
प्रतियोगिता – बोलती कलम
चतुर्थ राउंड
अल्फ़ाज़ ए सुकून

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