जलवायु परिवर्तन, कौन ज़िम्मेदार
(प्रशांत कुमार शाह)
माना युद्ध ज़रूरी है देश के लिए,
अपने समाज और परिवेश के लिए।
पर क्या इसका दूसरा पक्ष देखा है?
बम और गोले ने कब प्रदूषण रोका है?
दिवाली पर पटाखे और फुलझड़ी,
और लोग जलाएं लंबी वाली लड़ी।
पर क्या इसका अंजाम जानते हैं?
जलवायु परिवर्तन कहाँ मानते हैं!
आधुनिकता के नाम पर गाड़ियाँ,
साइकिल के स्थान पर चलती हैं।
काम तो जल्दी हो जाता है इससे,
पर ये मौसम को खूब खलती हैं।
जलवायु परिवर्तन, जिम्मेदार कौन?
ये जानते हैं सब, पर रहें हमेशा मौन।
सुख-सुविधाओं के नाम पर अब तो,
कर रहे हैं सब आजकल प्रकृति गौण।
ख़ैर, इस बात का ज़िम्मेदार इंसान है,
जो समझता खुद को अब भगवान है।
ये नए आविष्कार अब तांडव करता है,
इंसान आजकल अल्पायु में मरता है।
बदल गया जलवायु और बदले हालात,
तकनीक से होती है ऑनलाइन मुलाकात।
पर क्या पता इंसान को क्या हो रहा है?
जान लो, मिल रही है ओज़ोन को आघात।
रुक जाओ, अब भी कुछ नहीं बिगड़ा,
लगा दो थोड़ा विकास पर कुछ पहरा।
विकास करो पर अब पेड़ भी लगाओ,
अपने आविष्कार से नई प्रकृति बनाओ।
ये धरती हमारी जान है, बात मान लो,
नदियाँ इसकी शान हैं, अब जान लो।
कम कर दो प्रदूषण अब ये अच्छा होगा ,
तभी तो खूबसूरत होने वाला बच्चा होगा।
करता है “शाह” आज तो गुहार सबसे,
करो प्रकृति से प्यार, थोड़ा बढ़कर सबसे।
फिर क्या, पेड़ और खूबसूरत हरियाली होगी,
विकास के साथ एक नई कहानी होगी।
_प्रशांत कुमार शाह
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