कांप रही है अब सारी धरती,
देख मनुज की घृणित करनी।
मृदा अपरदन को मिला बढ़ावा,
क्यों दूषित हो गई सारी पृथ्वी।
वन संरक्षण छोड़ के हमने,
वृक्षों को क्यों काट दिया।
वायु प्रदूषण बढ़ा यूं ऐसे,
नगरीकरण जो ठान लिया।
और कुकृत्य मानव का ,
देख गगन भी डोल गया ,
फैक्ट्री और वाहनो का धुआं,
क्यों सारे जग में फैल गया।
कही प्लास्टिक का व्यापार,
करता है वसुधा को दूषित।
मानव जीवन पर संकट है,
कहीं न कर दे प्रकृति धूमिल।
क्यों पिघल रहे हैं ग्लेशियर ?
गर्मी इतनी है भूमंडल में ।
क्यों जलवायु बदल रहीं है,
क्या सकंट है जग जीवन पे?
ज़रा ठहरो बच न पाओगे।
अपने कृत्यों पर अंकुश लो।
समय का पहिया घूम न जाए,
कोई प्रकृति का प्रतिशोध न हो।
इस जलवायु परिवर्तन का,
आखिर जि़म्मेदार है कौन?
तांडव विनाशक प्रकृति का,
या मानवीय कुकृत्यों का बोझ।
जलवायु परिवर्तन कौन ज़िम्मेदार,
मनुज ही करता प्रकृति का नरसंहार।
संचयन जल अब मिल करो शिवोम,
नहीं तो तय हैं होना अब महा विनाश ।।
✍️ ✍️ शिवोम उपाध्याय
प्रतियोगिता – बोलती कलम
राउंड थ्री
अल्फ़ाज़ ए सुकून