आज़ाद परिंदे
नया युग है ,अब नया आग़ाज़ होगा ,
बेशक! फिर नई ही कोई बात होगी ।
पंख लगे जो सपनों को एकबार तो ,
यक़ीनन मंजिल से मुलाक़ात होगी ।
न कोई बांध सकता है,न ही क़ैद कर पाएगा।
परिंदा है वो, उड़े बिना कैसे रह पाएगा ।
एक उड़ान चाहिए खुले आकाश में बस,
बाक़ी कठिनाईयाँ , ख़ुद ही सह जायेगा ।
पिंजड़े संग उड़ चले, पंखों में उड़ान है ,
रोक सको तो रोक लो गर ,किसी में जान है।
बहुत हुआ ये सितम बेचारों, असहायों पर ,
कर लो दो-दो हाथ गर यकीं है भुजाओं पर ।
क़ैद कर परिंदों को , शक्तिशाली नहीं होगा ,
हक़ मार किसी का,कोई स्वाभिमानी नहीं होगा ।
ये दुनिया रंगमंच है सबके ,अपने किरदार है ,
वक़्त आने पर , चींटी भी बहुत बलवान है ।
_प्रशांत कुमार शाह
पटना बिहार