दुनिया बदल डाली

समन्दर की गहराई हूं ।
तड़पता हुआ नगमा हूं।
वक्त की पुकार हूं।
खोई हुई दास्ता हूं।
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मिलो दूर पत्थरो के शहर में,
मिलती  है तन्हाई की लहर में,
सो गया है आगोश में पल,
क्यों की अब पल पल कहर में।
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पलके जुकी है आज पनाह में,
ख्वाहिश है आज बेपनाह में,
नयनों में आश है बनी,
क्यों की मेरी निगाह है पनाह में।
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जीवन के इस सफर में
तू मिला है बेसफर में,
ये क्यामते कहर है,
बेवजह तू बेसफ़र है।
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रात के साए ने यूं करवट बदल ली,
बेतहाशा मोहब्बत बदल ली,
वाह, क्या तेरी फितरत है,
तू ने तो दुनिया ही बदल ली।
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                            ✍️adv. काव्या मझधार

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