अनहोनी,”एक अंदेशा”

फ़ौजी का परिवार।

माना देश सर्वोपरि है लेकिन बेटा धर्म निभाओ तुम,
कैसा है मेरा बेटा आकर के बात अपनी सुनाओ तुम,
मेरे नयन तरस गए हैं तुझे एक नजर देखने के लिए,
न हो जाए कोई *अनहोनी* बेटा शक्ल दिखाओ तुम।

एक बूढ़ी मां है उसकी इस बात को याद रखना तुम
मेरे घर का जलता चिराग उसको आबाद रखना तुम,
न हो कोई भी *अनहोनी* बॉर्डर का संज्ञान रखना तुम,
प्रार्थना यही है बजरंगी मेरे बेटे का ध्यान रखना तुम।

भैया याद है मुझे मेरे बचपन के सबसे प्यारे साथी तुम,
छोटी बहना के लिए बनता था मैं घोड़ा और हाथी तुम,
हो जाती है *अनहोनी* कभी मत होना जज्बाती तुम,
जीत पाकर अपने मां बापू की करना चौड़ी छाती तुम।

सुनो मेरे प्यारे भैया अपना अच्छे से ख्याल रखना तुम,
इन पथराई आंखों का नूर हो हमेशा ही बने रहना तुम,
न हो कोई भी *अनहोनी* इस बात का मान रखना तुम,
तुम्हारी कलाई महफूज़ रहे इस बात का ध्यान रखना तुम।

मांग के सिंदूर की कीमत को चुकता कर जाओ तुम,
कुछ दिनों की सही अब तुम छुट्टी लेकर आओ तुम,
यारा सुहागरात की सेज पर छोड़ गए थे तुम मुझको,
अब आकर मेरे बालों की उलझी लट सुलझाओ तुम।

फ़ौजी……

बापू तुम्हारे चरणों में आकर मुझको ये शीश नवाना है,
बॉर्डर से वापस आते संग ही मां को गले से लगाना है,
मेरे लिए रखी जो राखी उसको बहना से बंधवाना है,
लेकिन उससे पहले मुझे भारत को विजय दिलाना है।

भाई के सर पर आशीर्वाद भरा हाथ फेर कर जाना है,
यारा के उलझे बालों की लट भी मुझको सुलझाना है,
लेकिन पहले इस मातृ भूमि के कर्ज को मुझे चुकाना,
भारत मां की विजय पताका भी मुझको फहराना है।

जिस मां ने जन्मा मुझको उसको भी छोड़ के जाना है,
देश की रक्षा हेतु ओढ़ लूंगा कफन तिरंगा मैंने ठाना है,
अपनी पवित्र मातृ भूमि पर प्राण न्यौछावर कर दूंगा,
यही सकल जीवन का सार फौजी *मयंक* ने जाना है।

Updated: May 11, 2025 — 8:33 am

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