आज मुकम्मल हो गए उनके लिए लिखे सारे अल्फ़ाज़,
उनकी रहमत हुई है जो वो चले आए पढ़ने मेरे जज्बात,
इस आशिक की शायरी मोहताज थी उनके एक दीद की,
उनकी इनायत वो चले आए बरसी खुशीयों की सौगात।
सुनो यारा मेरी ये कलम हमेशा ही करेगी तेरा धन्यवाद,
तुम्हे जो समर्पित न हों मेरे वो शब्द हैं मेरे लिए अपवाद,
मुझसे तुम्हारा मिलना प्यार की जैसे रेगिस्तान को पानी,
न होंगे कभी हम जुदा मेरी कलम को हमेशा है विश्वास।
तुम्हारी नजरें की जैसे दिल पर चलती हुई कोई कटार,
तुम्हारा ये दिल है मेरा इबादतखाना यही है मेरी मजार,
सच कहूं तो *कलम की धार तलवार से तेज* हो बेशक,
किसी कि नहीं है तुम्हारी नजरों की कटार से तेज धार।
बताऊं तुम्हारे यार के खातिर मेरी शिद्दत ऐसी है कि,
जैसे फूल खिलने से आ जाती है किसी बाग में बहार,
जैसे सूफियाना नज्मों से गूंजती है अल्लाह की मजार,
जैसे महबूबा खुश होती है जब देखती है अपना यार।
कलम चलती तुम्हारे लिए तब होती है इसमें तेज धार,
जैसे कोई चिड़िया खुश हो जाती भरने के बाद उड़ान,
ये खुश होती ऐसे जैसे कोई दुल्हन कर लेती है श्रृंगार,
डूबती श्रृंगार में ऐसे कहती है चलती रहूं न हो मझधार।
और सुनो ये ऐसे चलती है कि जैसे करे तुमसे इक़रार,
जैसे किसी आशिक़ को चढ़ता प्यार का कोई खुमार,
यार *कलम की धार तलवार से तेज* हो मुझे क्या करना,
मुझे तो बस झेलने हैं तुम्हारे इन कातिल नजरों के वार।